Monday, September 15, 2008

मामाजी

रागिनी पुरी
युवा पत्रकार रागिनी पुरी की संवेदना हर उस चीज को पकड़ती है, जो झकझोरती है। अंदर से हिला देती है। मामाजी कहानी में भी उन्होंने बहुत ही छोटी सी बात के इर्द गिर्द कहानी के ताने-बाने को जिस तरह बुना है, उससे उनकी संवेदनात्मक पकड़ को समझा जा सकता है। लगातार लिखती हैं और उनके तीन ब्लॉग हैं, जहां जाकर आप अलग-अलग किस्म की रचनाओं का स्वाद ले सकते हैं। ये ब्लॉग्स हैं--किस्से कहने हैं, THE WRITTEN WORD, THE SOLITARY REAPER

मामाजी--भाग एक

करीब छह बज रहे हैं। पूरा घर सुबह की पहली अंगड़ाई ले रहा है। सुमेधा के कानों में हल्की हल्की आवाज़ें छन कर आ रही हैं। कभी बाथरूम की हल्की फुल्की उथल पुथल, तो कभी रसोई में बर्तनों के खड़कने की आवाज़ें...इसका मतलब मामीजी जाग गई हैं। लॉबी से किसी के चलने की आवाज़ें आ रही हैं। भारी चप्पलें मार्बल के फर्श पर आवाज़ करती हुईं....मामाजी हैं....मामाजी तो काफी पहले ही उठ गए होंगे।

सुमेधा ने हल्के से चादर से सिर बाहर निकाला है। बेडरूम के दरवाजे से उसकी नज़र मामाजी पर पड़ी है। सफेद रंग का धुला हुआ कुर्ता पायजामा पहनकर तैयार मामाजी...बाल करीने से संवरे हुए...कितनी एनर्जी है इनमें...नहा भी लिया...! कितने बज़े उठे होंगे...सुमेधा अलसाई हुई करवट बदलने की कोशिश करती है। पर फिर झिझक के कारण कुछ देर और बिस्तर पर पड़े रहने का इरादा छोड़ना पड़ता है।

अपना घर और अपना बेडरूम होता तो फिर तो आठ बजे तक सोई रहती...कोई नहीं टोकता..पर ये तो मामाजी का घर है। इसलिए थोड़ा लिहाज तो करना पड़ेगा। सुमेधा पिछली रात ही आई है यहां...अपनी मम्मी के साथ। आज राखी जो है। मम्मी मामाजी को राखी बांधेगीं, फिर सभी सत्संग सुनने स्वामीजी के आश्रम जाएंगे। सुमेधा के घर में सभी बड़े भक्त हैं स्वामीजी के। बहुत भक्ति भाव है सब में। और मामाजी और मामीजी में तो कुछ ज्यादा ही भक्ति भाव भरा है।मामाजी कहते हैं कि उन पर स्वामीजी कि बहुत कृपा है। सब कुछ उनका दिया हुआ ही तो है। आलीशान बंगला, दो दो लंबी कारें, फैक्ट्री, शानदार ऑफिस, नौकर चाकर....बेटी की शादी हो चुकी है, और बेटा विदेश में है। किसी तरह कि कोई कमी नहीं...सच में बड़ी कृपा है स्वामीजी की। अब मामाजी में भी तो भक्ति भाव बहुत है, कृपा तो होगी ही। स्वामीजी का आश्रम वैसे तो राजस्थान में है, पर आए दिन दिल्ली आते रहते हैं। विदेशों के दौरे पर भी जाते हैं तो दिल्ली से होकर ही जाते हैं। और उनके दिल्ली आने पर मामाजी उनके साथ ही रहते हैं, साए की तरह।

बहरहाल सुमेधा बिस्तर से उठ बैठी है। लॉबी में बैठे अखबार पढ़ रहे मामाजी की नज़र उस पर पड़ गई है।

"गुड मार्निंग बेटा," वो वहीं से बोल रहे हैं।

"गुड मार्निंग मामाजी," कहती हुई सुमेधा लॉबी की तरफ बढ़ने लगी है।

"और गर्मी तो नहीं लगी रात को? मैंने ए-सी बंद कर दिया था।"

"नहीं मामाजी, बल्कि सुबह को तो ठंड होने लगी थी। अच्छा किया ए-सी बंद कर दिया।"

"तो हां बेटाजी...पहले तो ये बताओ की नाश्ते में क्या लोगे? वैसे तुम्हारी मामी ने आलू उबाल लिए हैं। अब बताओ, सैंडविच खाओगे या फिर आलू के परांठे ? "

"मामाजी, दोनों चीज़े परफेक्ट हैं, जो सभी खाएंगे, मैं भी वही खाऊंगी," कहती हुई सुमेधा रसोई की ओर बढ़ने लगती है। मामाजी भी अखबार समेटते उसके पीछे आने लगते हैं।रसोई में मामीजी चुपचाप काम में लगी हैं। वो ज़्यादा बोलती नहीं। बस काम की ही बात करती हैं। शंभु घर की सफाई कर रहा है। वो बीच बीच में उसे ठीक ढंग से काम करने की हिदायत देती हुईं आलू छीलने में लगी हैं।मामाजी रसोई में आ मामीजी को नाश्ते में आलू के परांठे तैयार करने को कहते हुए खुद चाय बनाने की तैयारियों में जुट जाते हैं।

अब तो सुमेधा की मम्मी भी तैयार होकर आ गई हैं। रसोईघर में खड़े खड़े सभी इधर उधर की बातें करने में मशगूल हो जाते हैं।सुमेधा की इन बातों में को दिलचस्पी नहीं। वो टीवी ऑन करती है। कहीं कुछ खास नहीं आ रहा। खबरें भी कुछ खास नहीं। एक लोकल चैनल पर पुराने गाने आ रहे हैं। हल्की आवाज़ में वो चैनल लगा सुमेधा नहाने की तैयारियों में जुट जाती है।बैग से ब्रश, कपड़े और तौलिया निकाल वो बाथरूम की ओर बढ़ रही है।

"बेटा, आपने चाय नहीं पीनी पहले ?" मामाजी पूछ रहे हैं।

"नहीं मामाजी, एक ही बार पीऊंगी...नाश्ते के साथ..."

"ठीक है, फिर आओ बता दूं बाथरूम में शैंपू वगैरह कहां रखा है।'' मामाजी उसके साथ बाथरूम में आएं हैं। ये गीज़र का प्लग, इस नल में गर्म पानी, इसमें ठंडा, यहां से शावर...सबकुछ समझा रहे हैं। अब मामाजी ने कपबोर्ड खोल दिया है...माइल्ड शैम्पू, क्लीनिक प्लस, साबुन, तेल, बॉडी ऑयल...सब समझा रहे हैं।

" अच्छा बेटा, और किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो आवाज़ दे देना," मामाजी कहते हुए वापस रसोई में चले गए हैं।सुमेधा बाथरूम का दरवाजा बंद कर बैठी सोच रही है। कितने कैयरिंग हैं ना मामाजी। कितना ख्याल रखते हैं सब का....और घर की हर चीज का पता है उनको। उस पर से क्या पर्सनैलिटी है...हर दम एकदम फिट।

मामा की दीवानी सुमेधा लेकिन आखिर ऐसा क्या होता है कि सुमेधा के मन में मामा के प्रति भर जाती है वितृष्णा। जानने के लिए कल पढ़िए कहानी की अगली और आखिरी किस्त

3 comments:

Udan Tashtari said...

बेहतरीन बह रही है कहानी-कल का इन्तजार कर रहा हूँ आगे पढने के लिए.

अनुज खरे said...

bahut hi badia kahani.
badhai
anuj khare

अनुज खरे said...

bahut hi badia kahani.
badhai
anuj khare