हाशिए पर--आखिरी किस्त
उदयराज
हाशिए पर कहानी पिछली दो किस्तों 'मुख्यधारा' से भटका एक कॉमरेड और दो कॉमरेड्स, एक असफल प्रेम कहानी में आपने पड़ा श्यामल और दीपक के वैचारिक मतभेद। आज पढ़िए कहानी की तीसरी और आखिरी किस्त
''दीपक, तुमसे हम मित्र की तरह मिलने आया और तुम हमको ये सब शिक्षा देने लगा। हमको तुम नया आदमी समझता है क्या? हम भी तुम्हारा माफिक पार्टी किया। बड़ा बड़ा बोई (किताब) पढ़ा। जिस गरीब का तुम पक्ष लेता है, वो अपना भूख मिटाने का वास्ते, अपना हवस का वास्ते तुमको-हमको सबको बेच खाएगा। तुम तो खाली बोई में पड़ा रहता है। वास्तविक दुनिया का कोई चाल तुमको कैसे समझ में आएगा? मिल का यूनियन देखो। एक दो दिन हड़ताल हुआ नहीं कि सब गरीब लोग भागने लगा। कुत्ता माफिक उस मिल को छोड़ दूसरा मिल में जाकर रिरियाने लगा। नहीं तो ठेकेदार के पास में जाकर काम करने लगा। अइसा लोग से क्या होगा?''
''दादा, गरीब तो गरीब इसीलिए है कि उसके पास न तो सोच की धारा है न ही सोच की धारा बनाने की स्थिति। इस स्थिति को बनाने और उन्हें मुहैया कराने की लड़ाई हमारी लड़ाई है। किसी चीनी या रूसी रास्ते से नहीं। अपने रास्ते से बिल्कुल देसी रास्ते से। जिस आस्था और विश्वास के लोग कायल हैं--उसी आस्था और विश्वास को रखते हुए दृष्टि में परिवर्तन लाना है।''
''दीपक, इसीलिए हम तुम्हारा पास आया है। देखो, तुम विचार करता है--हमको बढ़िया-बढ़िया स्लोगन दे सकता है। तुम्हारे जैसा लोगों का हमारा पास एक पूरा टीम है। पर तुम्हारा माफिक वो सब भी कुछ कुछ टेढ़ा ही है। तुम हमारा मित्र है। हम उस सबका साथ तुमको भी सह लेगा...। तुम पाजी मार्जिन पर क्यों सड़ना चाहता है?''
'' मार्जिन पर कोई सड़ता नहीं दादा। बल्कि तुमलोगों की मुख्य प्रवाह का आधार बनता है। मैथ तो बनाया ही होगा तुमने स्कूल डेज में। मार्जिन पर ही मौलिक क्रियाएं गुणा, भाग, जोड़, घटाव की जाती है। बाकी पेज तो रिजल्ट ही रिजल्ट का मकड़जाल होता है।''
''लेकिन तुम्हारा वैचारिक क्रांति मार्जिन पर नहीं आ सकता। प्याले में तूफान कहां से आएगा?''
''मार्जिन तूफ़ान के लिए नहीं होता। तूफान आने पर लोग बचने के लिए किनारे चले जाते हैं। सुरक्षा के लिए ताकि असमय और अनीतिवश आए तूफ़ान से बचाकर अपने को नए संघर्ष में लगा सकें।''
''तो यही तुम्हारा फैसला है?''
''क्या?''
''कि तुम हमारा साथ नहीं आएगा?''
''यदि तुम आज की मुख्यधारा के साथ हो तो....।''
''तुम्हारा मार्जिन पर हमारा वास्ते जगह रहेगा?''
''दुर्भाग्य को निमंत्रण ने दें आप।''
''उसी दुर्भाग्य से तुमको बचाना चाहता है हम।''
''मगर, यह तो हमारा सौभाग्य है।''
''क्या?''
''बने रहना--वहीं हाशिए पर।''
Saturday, September 13, 2008
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1 comment:
सत्येन्द्र कहानी अच्छी है,
उदय ने चीन और रूसी रास्ते को न अपना कर भारतीय तरीके की बात की, यह अच्छा लगा,
हां, संसदीय वामपंथियों के दोगलेपन को भी उजागर करती है कहानी...
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