कहानी
हमसफ़र--आखिरी किस्त
कल आपने हमसफ़र के भाग-3 बुढ़ापा जीना चाहते हैं घोष बाबू में घोष बाबू की जिंदगी के दर्द को जाना। आज पेश है कहानी की चौथी और आखिरी किस्त
थोड़ी ही देर में मकान में अंधेरा था। सिफ उनके कमरे की बत्ती जल रही थी। खाने का कार्यक्रम अब रद्द हो चुका था। भूख मर चुकी थी। नींद का दूर-दूर तक नामो-निशान नहीं था। दूर-दूर तक सुंदरी का भी कोई नामो निशान नहीं था। अब दिमाग सोचने की हालत में नहीं था। जब अपना बेटा अपना नहीं हुआ तो वे सुंदरी के लिए इतना परेशान क्यों हो रहे हैं? उन्होंने खुद को समझाने की कोशिश की। थोड़ी तसल्ली मिली लेकिन फिर थोड़ी देर बाद घूम फिर कर वहीं चिन्ता, वही परेशानी। क्यों न किसी की मदद ली जाय? किसे फोन करें? आशीष को फोन कर फायदा नहीं। एक तो इतनी रात वह उतनी दूर से आयेगा नहीं और ऊपर से नाराज भी होगा। किसे फोन करें? अब अफसोस हो रहा था। पहले ही किसी को फोन कर सुंदरी को ढूंढने की कोशिश करनी चाहिए थी लेकिन रात के साढ़े बारह बजे किसे फोन करें। किसी को फोन करने का इरादा छोड़ दिया।
नहीं अब किसी पर इस तरह निर्भर नहीं होना है। अपनी जिंदगी है, अकेले चैन से जीना चाहिए। सुंदरी के चक्कर में एक दिन की जिंदगी बर्बाद हो गई थी। वे लेट गये। नहीं आज से वे अकेले हैं। अकेले जियेंगे। उन्होंने जोर से आंखें बंद कर ली। सोने की कोशिश करने लगे। लेकिन आंखें बंद करते ही सुंदरी ज्यादा प्रबल रूप से उनकी आंखों के सामने आ गई। उन्होंने और जोर से आंखें बंद करने की कोशिश की। सुंदरी और साफ़ नजर आने लगी। उन्होंने घबराकर आंखें खोल ली। ये सुंदरी उनका पीछा क्यों नहीं छोड़ रही है? तभी आवाज आई--म्याऊं, म्याऊं....... वे तंग आ गये। अब कान भी धोखा देने लगे? लेकिन नहीं... फिर आवाज आई--म्याऊं.....म्याऊं........इसका मतलब है सुंदरी आ गई थी। घोषबाबू तेजी से दरवाजे की ओर बढ़े उसके स्वागत के लिए।
Wednesday, September 10, 2008
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2 comments:
"yesterday i read this story, and was waiting for the end , so today the suspence of sundree was cleared...... great ending"
Regards
अकेलेपन को बाँटने के लिए पालतु जानवर भी जीवन का अंग बन जाते हैं. सुन्दर कथा.
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आपके आत्मिक स्नेह और सतत हौसला अफजाई से लिए बहुत आभार.
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