Friday, September 12, 2008

दो कॉमरेड्स, एक असफल प्रेम कहानी

कहानी
हाशिए पर--भाग 2
उदयराज

कल आपने कहानी के पहले भाग 'मुख्यधारा' से भटका एक कॉमरेड में पढ़ी दो कॉमरेड्स के बीच बहस। श्यामल दीपक को मनाने की कोशिश करता है लेकिन क्या दीपक अपने आदर्श से हटेगा? जानने के लिए पढ़िए बाकी कहानी

''हम तुमको कापुरुष(कायर) बोलता था। बोला था हम कि दूब घास के माफिक बिछा रहेगा तो ओस का बूंद भी दबा देगा। और हम गलत तो नहीं बोला था। आज हमको देखो। कोई दबाने की बात सोच भी नहीं सकता। हम लोगों का कितना क्लब खोल दिया। जहां जहां यूनिटी नहीं था, वहां-वहां यूनियन बनवा दिया।''
''हां, श्यामल दा, हर तंत्र के अपने ताने-बाने होते हैं। तुमने भी ये खाते पूरी कर दी। याद है वह लड़की? वही लड़की, जिस पर मैं और तुम दोनों ही मन ही मन फिदा हो गए थे...। अपनी खिड़की के पास खड़े हम दोनों उसे दूसरी खिड़की के पास कपड़े उतारते देखते, उसके बदन के सलोनेपन के रेशमी रेशों से सरकती हुई हमारी आंखें हर गोपन अंगों पर ठहर ठहर जाती थीं और गर्मी में भी हम ठिठुर-ठिठुर जाते थे। इस सिहरन में एक चिंगारी सी चिनक उठती थी, जब हम एक दूसरे को अपने जैसी ही स्थिति में पाते। मैं तो सहज हो जाता लेकिन तुम एकदम से झपट पड़ना चाहते थे।"
''हां, लेकिन वह लड़की तो हम दोनों को धोखा दे गया।"
'' दोनों को नहीं, सिर्फ तुम्हें श्यामल दा। तुमने उस पर अधिकार मान लिया था अपना--अकेले अकेले। प्यार की खासियत है अधिकार सहज सा।''
''वो चीज ही ऐसा था। कितना रक्तो भर देता था उसका देखना।''
''हां, हर मादक चीज़ मादकता फैलाती है पर होती बड़ी क्षणिक है। बस यही सोच सहजता है।''
'' तुम साला पाजी (बदमाश) आदमी है। तुम इतना धैर्य कहां से पा गया?"
''इसीलिए तो हाशिये पर हूं।''
''तुम लेखक है न। बात बनाना तुमको बहुत आता है।''
'' लेकिन बातें तो जोश भरी तुम करते हो कॉमरेड। ताली बजवाते हो, जोश जमाते हो और ...।''
''दीपक, कॉमरेड तो तुम भी हो। तुम तो सब समझता है। जब पावर का लड़ाई चलता है तब असली उद्देश्य पाना कितना मुश्किल है। है न?"
'' मुश्किल तो है पर असंभव नहीं श्यामल दा। इस देश को जब काम की जरूरत है, तब हड़ताल होती है। हड़ताल एक कारगर तरीका, जिसे आए दिन उपयोग में ला लाकर हम कहां पहुंच गए।''
''हड़ताल का यूज ज्यादा हुआ और कभी कभी बेकार भी हुआ। हम मानता है। लेकिन हमारा आदमी लोग ज्यादा होशियार भी बन गया। ये तो तुम भी मानेगा?"
''मानेगा क्यों नहीं? रोज ही तो भुगत रहा हूं। आदमी के सामन्ती विचार और आचरण नए नए रूप में सामने आ गए हैं। पुराने महल ढहे तो नये महल समस्त सजते हैं--जैसे घरों के पर्दे बदल गए हों।''
''तुम हिप्पोक्रेट है। झोला लटकाए कॉमरेड को स्कूटर पर बैठा देख कर तुम जल गया है--कार में चलता देख कर सुलग गया है। है न?''
''हां, कितनी जानों के जनाजे पर उगी हैं ये बेलें...। हां,क्योंकि मैंने माना है कि कॉमरेड वह है जो सड़क के आदमी के पास है, साथ है। किसानों के पांव के छाले, उसके अपने हैं। मजदूर के घर के चूल्हे का धुआं उसकी सांसहै---बिना किसी भेद के, बिना भाव के। कॉमरेड के जीवन का सपना सबके लिए होता है, सिर्फ अपने लिए नहीं। श्यामल दा, तुमने क्लब खोले हैं, तो उनसे गुंडागर्दी बढ़ी है, बलात्कार बढ़े हैं। कितने गरीबों को फायदा पहुंचा है इन क्लबों से?''
''दीपक, तुम यूनिटी के अगेन्स्ट बात करता है। अरे, दुनिया कासब कॉमरेड यूनिटी का बात, ऐक्यो की बात बताता है। तुम भी इसी ऐक्य (एकता) के लिए चिंता करता है। बैठने के लिए एक जगह होने से विचार-विमर्श का अवसर मिलता है।''
''श्यामल दा, तुम्हारे इस क्लब में कैसे लोग आते हैं? अधिकतर क्लब्स में बेकार युवकों का गिरोह अंटा पड़ा है। तुम्हारे संरक्षण का लाभ उठाकर ये लोग समाज में एक नई रस्म चलाते हैं। आतंक का रस्म। हर छोटी बड़ी पूजा के लिए चंदा उगाहना ही जैसे इनका मुख्य काम है। चलो, इस पर भी ऐतराज नहीं लेकिन चंदा उगाहने के लिए जिस आतंक का सृजन किया जाता है--क्या वह आतंक भी हमारी पार्टी के सिद्धान्तों में सूचीबद्ध है? गरीब हो या अमीर, ठेलेवाला हो या ट्रक वाला, पैदल चलने वाला हो या कार वाला, इन तथाकथित कॉमरेड नौजवानों से सभी एक समान आतंकित रहते हैं। क्या कहेंगे आप इसे?"
''नौयुवक लोग है न। उमंग में थोड़ा ज्यादा बढ़ जाता है। अरे, हम तुम भी तो नौयुवक था। छोटा छोटा बात में फायर हो जाता था। जैसे हमारा फायर होने से अभी सब कुछ बदल जाएगा। लेकिन क्या बदला? गरीब और गरीब हुआ, अमीर और अमीर हुआ...।''
''हां, इसके साथ कॉमरेड्स भी तो अमीर हो गया और उसका संघर्ष गरीब हो गया।''
'' तो खराब क्या हो गया? कॉमरेड आदमी नहीं है क्या? क्या उसका आशा-आकांक्षा सही नहीं है?''
''है। साधन सम्पन्न होना कॉमरेड के लिए सुअवसर की बात है लेकिन साधारण आदमी सा नहीं। यहीं तो हम लोग सब भूल गए। जिन्हें साथ लेकर चले, वो रहा में छूटते गए और नए लोग मिलते गए, जिन्होंने अपने सपने और अपनी आशा हम पर उतार फेंकी और हमने अंधेरे में ही सही, उसे अपनाने में गर्व समझा। आदतन आवाज़ तो कॉमरेडी ही रही लेकिन आचरण, जीवन शैली वहीं हो गई, जिसका शायद हमसे बड़ा विरोधी कोई नहीं था। कितना दोहरा चरित्र हो गया हमारा। गरीबों-असहायों को हमने यही दोमुंही चरित्र दिया है।''
दीपक के आदर्श भरी बातों का क्या असर होगा श्यामल का? क्या वो सत्ता छोड़ दीपक के साथ आ जाएगा या दीपक को भी अपने साथ तथाकथित मुख्यधारा में जोड़ लेगा? जानने के लिए पढ़िए कहानी की अगली और आखिरी किस्त कल।

1 comment:

seema gupta said...

" very interetsing, waiting for end"

Regards