Monday, September 8, 2008

क्या ऐसे होते हैं बेटे?

कहानी
हमसफ़र-भाग 2
कल आपने कहानी के पहले भाग में पढ़ा कि सुंदरी के चले जाने से घोषबाबू कितने परेशान हो गए। आज जानिए आगे का हाल

ऐसा तनाव इससे पहले एक बार ही झेला था उन्होंने। आशीष तब छठीं कक्षा का छात्र था। शाम को सात बजे जब वे दफ्तर से घर लौटे थे तो कमला को बिलखते हुए पाया था। ---क्या हुआ? पता चला आशीष अभी तक स्कूल से नहीं लौटा है। वे भी सन्न रह गये। साढ़े चार बजे तक स्कूल से लौट आने की बात थी लेकिन शाम सात बजे तक नहीं लौटा? कमला उसके सभी साथियों से पूछताछ कर चुकी थी। सभी घर लौट चुके थे और किसी को भी आशीष के बारे में जानकारी नहीं थी। सबसे चौंकाने वाली बात तो अमल ने बताई थी कि वह लंच ऑवर के बाद से ही गायब है। अर्थात सेकेंड हॉफ में वह स्कूल में नहीं था। आस पड़ोस के कई लोग घर में आ गये थे। सभी सांत्वना दे रहे थे---अपनी बुआ के यहां चला गया होगा, अपने चाचा के यहां चला गया होगा, टयूशन पढ़ने गया होगा,किसी दोस्त के यहां गया होगा लेकिन घोष बाबू का मन तो किसी अशुभ बात के अलावा और कुछ सोच ही नहीं पा रहा था। अपहरण की घटनाएं काफी बढ़ गई थीं। कहीं किसी ने उसे अगवा तो नहीं कर लिया लेकिन उनकी माली हालत इतनी अच्छी नहीं थी कि कोई फिरौती के लालच में उनके बेटे का अपहरण करता। थोड़ा शकुन मिला। उन्हें विश्वास था कि किसी ने उसका अपहरण नहीं किया होगा। फिर? कहीं किसी सड़क दुर्घटना में..........? नहीं, नहीं ऐसा नहीं हो सकता। कमला के बार-बार मना करने के बावजूद उन्होंने आशीष के लिए साइकिल खरीद ली थी। आशीष काफी खुश हुआ था साइकिल पाकर और घोष बाबू को रोज-रोज के बस भाड़े से राहत मिली थी। अब वह साइकिल से ही स्कूल जाता था। एक के बाद एक अनिष्ट आशंकाएं मन में आ रही थीं। किसी ने थाने जाकर रिपोर्ट लिखाने की सलाह दी। पता नहीं क्यों इस सलाह पर घोषबाबू के हाथ-पांव ठंडे पड़ गये थे। थाने का नाम आते ही उन्हें लगा कि कोई बहुत बड़ा अनिष्ट हो गया हो।उनका मन नहीं माना। तय हुआ कि पहले सारे रिश्तेदारों के यहां ढूंढ लिया जाय। घोषबाबू अपनी बहन के यहां निकल गये, पास-पड़ोस के एक दो लोग उनके साथ हो लिये। एक दो लोग दूसरे रिश्तेदारों के यहां चले गये। कमला घर में रोती रही। कमला के लिए वक्त काटना मुश्किल हो गया था। तनाव का वक्त काटे नहीं कटता। आज वक्त भारी पड़ रहा था।

आशीष मिला था। अपनी बुआ के यहां। स्कूल से सीधे बुआ के यहां चला गया था लेकिन बुआ से यह नहीं बताया था कि उसके यहां आने की सूचना घरवालों को नहीं है। इसलिए बुआ निश्चिंत थीं। पहले भी वह बुआ के पास आकर एक दो दिन रह कर जाता था। तब रात के दस बज रहे थे। घोष बाबू को देख कर आशीष सकते में आ गया था। उसे लगा अब पिटाई होगी। वह जाकर बुआ के पीछे छिप गया। बुआ भी माजरा समझ गई लेकिन घोष बाबू को गुस्सा नहीं आया। वह रो पड़े। उन्होंने आशीष को सीने से चिपटा लिया। उस रात तो मानो कमला और घोष बाबू को नया जीवन मिला था।

अब आशीष बड़ा हो गया है। बाप बन गया है। अब वह छठवीं कक्षा का आशीष नहीं है। इसलिए उसे देखे महीनों गुजर जाते हैं लेकिन घोष बाबू को वह तड़प महसूस नहीं होती, जो उस रात हुई थी। याद आती है, आंखों में आंसू भी आते हैं लेकिन वह तड़प। क्या बेटे जब बड़े हो जाते हैं तो बाप-बेटे के सम्बन्ध की संवेदनशीलता खत्म हो जाती है? क्या इसी दिन के लिए बेटे की मन्नतें मांगते हैं लोग? क्या इसी दिन के लिए लोग बेटा पैदा होने पर जश्न मनाते हैं? मिठाइयां बांटते हैं? क्या ....? क्या ....?? क्या....??? कितने क्या लेकिन किसी भी कया का जवाब नहीं। कभी-कभी क्या के चक्रव्यूह में बुरी तरह फस जाते थे घोष बाबू और तब उन्हें लगता कि चाहें वे लाख नकारे लेकिन वह तड़प आज भी है और शायद जब तक शरीर में सांस है, तब तक वह तड़प रहेगी। क्या आशीष के मन में भी उनके लिए ऐसी तड़प आती होगी? क्या वह कभी यह सोच कर दुखी होता होगा कि पापा अकेले हैं? क्या यह सोचकर वह परेशान होता होगा कि अगर पापा को कुछ हो गया तो कौन संभालेगा उन्हें? अकेले पापा और दिल की बीमारी? क्या वह परेशान होता होगा? शायद नहीं। अगर परेशान होता तो कम से कम दस दिन में एक बार ही सही ख़बर तो लेता। यहां तो महीनों बीत जाते हैं। तीन महीना पहले आया था वह। उसके बाद से कोई ख़बर नहीं। उन्होंने सर झटक दिया। बीमारी से उन्हें डर नहीं था। बीमारी उन्हें अच्छी लगती है। कम से कम कोई चीज तो है, जो उनका साथ कभी नहीं छोड़ती। ऐसी बीमारी से क्या डरना? क्यों परेशान होना? बेटे से तो अच्छा बीमारी है। बेटे ने साथ छोड़ दिया, बीमारी ने नहीं । सुंदरी ने भी अच्छा साथ निभाया था लेकिन आज? कहां चली गई वह? घबराहट होने लगी। ज्यादा परेशान होना, ज्यादा सोचना मना था उनके लिए लेकिन आज सुंदरी ने तो परेशान किया ही, पिछले जीवन के तनावों में ढकेल दिया था। सीने में हल्का दर्द होने लगा था। वह समझ रहे थे। दिल का दौरा पड़ सकता है। पसीना भी आने लगा था। वे घबड़ा गये। घर में अकेले थे। इससे पहले कि कुछ हो तत्काल दवा लेनी ज़रूरी है। वे बिस्तर से उठे लेकिन पांव झनझना रहा था। बहुत देर तक एक ही करवट सोने की वजह से कोई नस दब गई होगी। चल नहीं पाये। वहीं लड़खड़ा कर बैठ गये।

तो क्या सुंदरी भी घोष बाबू का साथ छोड़ देगी? कौन है ये सुंदरी? क्यों परेशान कर रही है घोषबाबू को? जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग कल।

5 comments:

श्रीकांत पाराशर said...

Bete ne saath chhod diya, beemari ne nahin. kya marmik line hai. bahut hi bhavnatmak kahani hai. sachhai se ot-prot.

श्रीकांत पाराशर said...

Sateyndraji, aap chahen to hamare akhbar ke liye aisi hi koi kahani prakashanarth bhej sakte hain.

मैथिली गुप्त said...

सत्येन्द्र जी, बहुत मार्मिक लिखा है.

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत बेहतरीन कहानी चल रही है ! अगले भाग का इंतजार करेंगे !

योगेन्द्र मौदगिल said...

Wah...wah
kahani achhi hai...