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सरौता बाई नाम था उसका. सुबह सुबह ६ बजे आकर कुंडी खटखटाती थी. तब से उसका जो दिन शुरु होता कि ६ घर निपटाते शाम के ६ बजते. कपड़ा, भाडू, पौंछा, बरतन और कभी कभी मालकिनों की मालिश. बात कम ही करती थी.पता चला कि उसका पति शराब पी पी कर मर गया कुछ साल पहले.
कहानियों पर केंद्रित ब्लॉग
उर्दू कहानी
बीच की दीवार
उन्होंने अच्छी तरह सोच रखा था कि अगर फ़सादी आते हैं, पहले तो सद्र दरवाज़ा ही आसानी से नहीं टूट सकेगा। अगर दरवाज़ा टूट भी जाता है और वो अंदर घुसने की कोशिश करते हैं तो मशकूर अली राशिदा को अपने साथ ही रखेंगे। जहां तक हो सका आठ कारतूसों से फसादियों का मुकाबला करेंगे और नवां कारतूस राशिदा की इज्जत बचाने के लिए काफी होगा लेकिन आज उन्हें राशिदा की कम और अपनी छोटी बेटी सुगरा की ज्यादा फिक्र थी। सुग़रा सात-आठ साल की थी और अपनी तोतली जबान में इतनी प्यारी बातें करती थी कि सभी उसके गरवीदा थे। पिछले तीन दिन से वो बुखार में मुब्तला थी। दवाई तो दरकिनार, खाने के लिए एक दाना भी बाकी न था।
मशकूर अली हमेशा ज़ख़ीरा अंदोजी के ख़िलाफ़ थे और कभी उन्होंने मुस्तक्बिल की फिक्र न की थी लेकिन अब पछता रहे थे।'' काश पहले ही एक आध बोरी आटा या चावल वैगरह जमा कर लेता तो आज ये नौबत न आती।'' उस कर्फ्यू में बिजली और पानी का निजाम दरहम-बरहम हो गया था। अब तो पीने का पानी भी बमुश्किल तमाम फराहम हो पा रहा था और फिर रह-रह कर सुग़रा का दिलदोज़ अंदाज़ के साथ खाना मांगना उन्हें बेचैन कर रहा था। आज तक उन्होंने किसी के आगे हाथ नहीं फैलाए थे। जमींदारी खत्म हुई, जायेदाद के बंटवारे हुए। मशकूर अली के हिस्से में ये पुराना मकान और चार छोटी-छोटी दुकानें आईं, जिनका बरायेनाम किराया ही उनका जरिय-ए-गुज़र औक़ात था। उन्होंने इसी पर इक्तेफ़ा किया, लेकिन अपने भाइयों में सबसे बड़े होने के नाते उन्होंने जिद करके अपने बुजुर्गों की निशानी ये दो-नाली बंदूक अपने कब्जे में कर ली थी। कितने ही उतार-चढ़ाव आये, एक-एक करके घर की सभी क़ीमती चीजें सस्ते दामों में बिक गई। फाकों तक की नौबत आई लेकिन उन्हें अपने आबाई शानो शाकत की निशानी उस दो नाली बंदूक को बेचने का ख्याल भी नहीं, मगर आज वो अपनी सुग़रा की भूख की खातिर अपनी जान भी बेचने को तैयार थे। वो फ़कीरों की तरह भीख मांग कर भी अपनी बच्ची का पेट भरना चाहते थे लेकिन बाहर निकलना मुमकिन न था। कर्फ्यू ने सख्त शक्ल अख्तियार कर ली थी, देखते ही गोली मार देने के अहकामात जारी हो गए थे। बाहर पुलिस की जीप गुजरती और लाउडस्पीकर पर यही ऐलान करती कि कोई भी घर से बाहर न निकले।
क्या इस भीषण संकट से निकल पाए मशकूर अली? क्या सुग़रा को मिल पाया पेट भर खाना? क्या राशिदा की रक्षा कर पाए मशकूर अली अपनी दो नाली बंदूक से? जानने के लिए कहानी का अगला और आखिरी किस्त पढिए कल
मामाजी--दूसरी और आखिरी किस्त
रागिनी पुरी
कल कहानी मामाजी की पहली किस्त में आपने पढ़ा कि सुमेधा किस तरह अपने मामाजी के व्यक्तित्व से प्रभावित थी। आज पढ़िए कहानी की दूसरी और आखिरी किस्त
मन ही मन मामाजी की तारीफों के पुल बांधते बांधते सुमेधा का ध्यान अपने पापा की ओर चला गया है। बिलकुल मस्तमौला इंसान हैं उसके पापा। दिल के बिलकुल साफ, पर अपने दम पर तो वो घर को बिलकुल मैनेज नहीं कर सकते। अगर घर में वो अकेले हों और चार मेहमान आ जाएं, तो उन्हें तो कुछ सूझेगा ही नहीं...उन्हें तो हर चीज़ मम्मी से मांगने की आदत है...हां चाय शायद ज़रूर बना लेंगे। सुमेधा सोचते- सोचते हंसने लगी।राखी की रस्म हो गई है। काफी देर से हंसी ठहाकों का सिलसिला चल रहा है। पूरी तरह से फील गुड फैक्टर वाला माहौल है। नाश्ता भी लगभग हो ही चुका है। गर्मागर्म आलू के परांठे, घर का बना सफेद मक्खन और दही। अब गर्मागर्म मसालेदार चाय की चुस्कियों के साथ ठहाकों का दौर चल रहा है। बचपन की बातें, लड़ाई झगड़े, बेवकूफियां...सब याद की जा रही हैं।अब बस थोड़ी ही देर में स्वामीजी के आश्रम के लिए निकलना है। वहां से सत्संग के बाद सुमेधा मम्मी के साथ अपने घर चली जाएगी।
शंभू ने गैरेज से कार निकाल दी है और अब उसे चमका रहा है। घर के सभी लोग तैयार हो निकलने की तैयारी कर रहे हैं।सत्संग के बाद मामाजी स्वामीजी के साथ रहेंगे और मामीजी फैक्ट्री चली जाएंगी, कुछ ज़रूरी काम निपटाने। सभी सत्संग घर के लिए निकल पड़े हैं। कार मामाजी ही ड्राइव कर रहे हैं। सुमेधा पीछे मम्मी के साथ बैठी है। मामीजी आगे हैं। सीडी प्लेयर पर स्वामीजी का सत्संग चल रहा है। सभी उसमें खोए हैं...."मनुष्य अपने कर्मों से जाना जाता है। वो खाली हाथ आया है, खाली हाथ जाएगा। सारी माया यहीं रह जाएगी...इसलिए ऐ परमात्मा के बन्दे, पाप ना कर, कल किसने देखा है...मोहमाया त्याग दे।" सत्संग चल रहा है, सभी चुप हैं।
ट्रैफिक सिग्नल पर गाड़ी रुकी है। एक मैली कुचैली सी लड़की कार की ओर बढ़ रही है। बाल बुरी तरह उलझे हुए...छोटी सी फ्रॉक कई जगह से फटी हुई...हाथ में एक गंदा सा कपड़ा है, जिसे वो कार पर फेरने लगी है।
"साले बहन..., सुबह सुबह आ जाते हैं।" मामाजी ज़ोर से बड़बड़ाने लगे हैं। लड़की उनके शीशे के बिलकुल पास आ गई है...हाथ फैलाए हुए...कुछ बोल भी रही है, पर कार के अंदर उसकी कमज़ोर आवाज़ सुनाई नहीं दे रही।
"साले हराम के पैदा करके छोड़ देते हैं सड़क पर....हमने क्या टकसाल लगाई हुई है...चल भाग यहां से...!" मामाजी बोलते जा रहे हैं...पर लड़की वहीं खड़ी हुई है....हाथ फैलाए...सुमेधा का दिल कर रहा है उस बच्ची को कुछ देने का...पर मामाजी का गुस्सा देख हिम्मत नहीं हो रही। शरीर ही मानो जड़ हो गया है। ना मुंह से आवाज़ निकल रही है और ना शरीर हिल रहा है। अभी अगर पापा होते यहां तो मामाजी को ज़रूर टोकते और बेचारी सी बच्ची को ज़रूर कुछ देते। पर ज्यादा धक्का तो इस बात है कि मामाजी बोल रहे हैं ये सब..! उसके सोफिस्टिकेटेड मामाजी...!सिग्नल अभी तक लाल ही है। अब तो लड़की हाथ फैलाए गिड़गिड़ा रही है। कार के शीशे से हाथ नहीं हटाया है अभी तक।
"सालों हरामज़ादों...! समझ नहीं आ रही क्या..." मामाजी ने कार का शीशा नीचे किया है।"ओए तुझे समझ नहीं आ रही क्या...नहीं देना कुछ भी हमने...भाग जा...पता नहीं कहां से आ जाते हैं साले...कार का शीशा खराब कर के रख दिया !" मामाजी ने लड़की को ज़ोर से धक्का दिया है। वो बीच सड़क पर गिरते गिरते संभल गई है और दूसरी कार की ओर बढ़ने लगी है।सिग्नल हरा हो गया है।
"बेवकूफ ने सारा शीशा खराब कर दिया...हाथ के निशान पड़ गए हैं...बेवकूफ लड़की..." मामाजी कार आगे बढ़ाते हुए गुस्से में बड़बड़ाते जा रहे हैं। मामीजी चुप हैं। शायद अपने पति की बातों को मौन सहमति दे रही हैं। मम्मी भी चुप हैं। पता नहीं उनके मन में क्या चल रहा है। सुमेधा भी चुप है। पर उसकी तो मानो ज़ुबान ही बेजुबान हो गई है। हर बात पर बढ़ चढ़कर बोलने वाली सुमेधा भी आज चुप है। सीडी प्लेयर पर स्वामीजी कहते जा रहे हैं,"बंदे, ये दुनिया तो बस एक छलावा है....तू ध्यान कर...इस मोहमाया की दुनिया से बाहर निकल....तू खाली हाथ आया है, खाली हाथ ही जाएगा..."
मामाजी--भाग एक
करीब छह बज रहे हैं। पूरा घर सुबह की पहली अंगड़ाई ले रहा है। सुमेधा के कानों में हल्की हल्की आवाज़ें छन कर आ रही हैं। कभी बाथरूम की हल्की फुल्की उथल पुथल, तो कभी रसोई में बर्तनों के खड़कने की आवाज़ें...इसका मतलब मामीजी जाग गई हैं। लॉबी से किसी के चलने की आवाज़ें आ रही हैं। भारी चप्पलें मार्बल के फर्श पर आवाज़ करती हुईं....मामाजी हैं....मामाजी तो काफी पहले ही उठ गए होंगे।
सुमेधा ने हल्के से चादर से सिर बाहर निकाला है। बेडरूम के दरवाजे से उसकी नज़र मामाजी पर पड़ी है। सफेद रंग का धुला हुआ कुर्ता पायजामा पहनकर तैयार मामाजी...बाल करीने से संवरे हुए...कितनी एनर्जी है इनमें...नहा भी लिया...! कितने बज़े उठे होंगे...सुमेधा अलसाई हुई करवट बदलने की कोशिश करती है। पर फिर झिझक के कारण कुछ देर और बिस्तर पर पड़े रहने का इरादा छोड़ना पड़ता है।
अपना घर और अपना बेडरूम होता तो फिर तो आठ बजे तक सोई रहती...कोई नहीं टोकता..पर ये तो मामाजी का घर है। इसलिए थोड़ा लिहाज तो करना पड़ेगा। सुमेधा पिछली रात ही आई है यहां...अपनी मम्मी के साथ। आज राखी जो है। मम्मी मामाजी को राखी बांधेगीं, फिर सभी सत्संग सुनने स्वामीजी के आश्रम जाएंगे। सुमेधा के घर में सभी बड़े भक्त हैं स्वामीजी के। बहुत भक्ति भाव है सब में। और मामाजी और मामीजी में तो कुछ ज्यादा ही भक्ति भाव भरा है।मामाजी कहते हैं कि उन पर स्वामीजी कि बहुत कृपा है। सब कुछ उनका दिया हुआ ही तो है। आलीशान बंगला, दो दो लंबी कारें, फैक्ट्री, शानदार ऑफिस, नौकर चाकर....बेटी की शादी हो चुकी है, और बेटा विदेश में है। किसी तरह कि कोई कमी नहीं...सच में बड़ी कृपा है स्वामीजी की। अब मामाजी में भी तो भक्ति भाव बहुत है, कृपा तो होगी ही। स्वामीजी का आश्रम वैसे तो राजस्थान में है, पर आए दिन दिल्ली आते रहते हैं। विदेशों के दौरे पर भी जाते हैं तो दिल्ली से होकर ही जाते हैं। और उनके दिल्ली आने पर मामाजी उनके साथ ही रहते हैं, साए की तरह।
बहरहाल सुमेधा बिस्तर से उठ बैठी है। लॉबी में बैठे अखबार पढ़ रहे मामाजी की नज़र उस पर पड़ गई है।
"गुड मार्निंग बेटा," वो वहीं से बोल रहे हैं।
"गुड मार्निंग मामाजी," कहती हुई सुमेधा लॉबी की तरफ बढ़ने लगी है।
"और गर्मी तो नहीं लगी रात को? मैंने ए-सी बंद कर दिया था।"
"नहीं मामाजी, बल्कि सुबह को तो ठंड होने लगी थी। अच्छा किया ए-सी बंद कर दिया।"
"तो हां बेटाजी...पहले तो ये बताओ की नाश्ते में क्या लोगे? वैसे तुम्हारी मामी ने आलू उबाल लिए हैं। अब बताओ, सैंडविच खाओगे या फिर आलू के परांठे ? "
"मामाजी, दोनों चीज़े परफेक्ट हैं, जो सभी खाएंगे, मैं भी वही खाऊंगी," कहती हुई सुमेधा रसोई की ओर बढ़ने लगती है। मामाजी भी अखबार समेटते उसके पीछे आने लगते हैं।रसोई में मामीजी चुपचाप काम में लगी हैं। वो ज़्यादा बोलती नहीं। बस काम की ही बात करती हैं। शंभु घर की सफाई कर रहा है। वो बीच बीच में उसे ठीक ढंग से काम करने की हिदायत देती हुईं आलू छीलने में लगी हैं।मामाजी रसोई में आ मामीजी को नाश्ते में आलू के परांठे तैयार करने को कहते हुए खुद चाय बनाने की तैयारियों में जुट जाते हैं।
अब तो सुमेधा की मम्मी भी तैयार होकर आ गई हैं। रसोईघर में खड़े खड़े सभी इधर उधर की बातें करने में मशगूल हो जाते हैं।सुमेधा की इन बातों में को दिलचस्पी नहीं। वो टीवी ऑन करती है। कहीं कुछ खास नहीं आ रहा। खबरें भी कुछ खास नहीं। एक लोकल चैनल पर पुराने गाने आ रहे हैं। हल्की आवाज़ में वो चैनल लगा सुमेधा नहाने की तैयारियों में जुट जाती है।बैग से ब्रश, कपड़े और तौलिया निकाल वो बाथरूम की ओर बढ़ रही है।
"बेटा, आपने चाय नहीं पीनी पहले ?" मामाजी पूछ रहे हैं।
"नहीं मामाजी, एक ही बार पीऊंगी...नाश्ते के साथ..."
"ठीक है, फिर आओ बता दूं बाथरूम में शैंपू वगैरह कहां रखा है।'' मामाजी उसके साथ बाथरूम में आएं हैं। ये गीज़र का प्लग, इस नल में गर्म पानी, इसमें ठंडा, यहां से शावर...सबकुछ समझा रहे हैं। अब मामाजी ने कपबोर्ड खोल दिया है...माइल्ड शैम्पू, क्लीनिक प्लस, साबुन, तेल, बॉडी ऑयल...सब समझा रहे हैं।
" अच्छा बेटा, और किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो आवाज़ दे देना," मामाजी कहते हुए वापस रसोई में चले गए हैं।सुमेधा बाथरूम का दरवाजा बंद कर बैठी सोच रही है। कितने कैयरिंग हैं ना मामाजी। कितना ख्याल रखते हैं सब का....और घर की हर चीज का पता है उनको। उस पर से क्या पर्सनैलिटी है...हर दम एकदम फिट।
मामा की दीवानी सुमेधा लेकिन आखिर ऐसा क्या होता है कि सुमेधा के मन में मामा के प्रति भर जाती है वितृष्णा। जानने के लिए कल पढ़िए कहानी की अगली और आखिरी किस्त