Tuesday, November 30, 2010

पासवर्ड के बिना जिंदगी

सत्येंद्र प्रसाद श्रीवास्तव

हवा का एक ऐसा झोंका जो पूरे शरीर में सिहरन पैदा कर देता है। लेकिन ये सिहरन मन को नहीं छू पाई। ठंडी हवा का झोंका शरीर को छूकर निकल गई। मन तक वो पहुंच ही नहीं पाई। शायद इसमें हवा का दोष नहीं। मन ने ही सारे दरवाजे बंद कर दिये हैं। उन दरवाजों को खोलने का पासवर्ड हवा के पास नहीं है।

एक ऐसी दुनिया में हम जी रहे हैं, जहां हर चीज के लिए पासवर्ड चाहिए। जिसके पास पासवर्ड नहीं, वो इस दुनिया में मिसफिट है। शायद वो भी मिसफिट है। उसके पास उसका अपना पासवर्ड भी नहीं है। वो ऊपर से जैसा है, अन्दर से भी वैसा ही है। सब कुछ पारदर्शी. पासवर्ड की कोई जरूरत नहीं लेकिन वक्त के साथ उसे बदलना पड़ा। उसके मन तक पहुंचने के लिए अब एक पासवर्ड चाहिए था। पासवर्ड वो भी नहीं जानता। पासवर्ड है। जब मन लॉक है तो पासवर्ड जरूर है, होना भी चाहिए लेकिन जिसके पास ये पासवर्ड है, वो न जाने कहां है। पासवर्ड सेट किया और गायब। उसने खोजने की कोशिश भी तो नहीं की। तब से लॉक है मन का दरवाजा।

उसे पासवर्ड की ये दुनिया अच्छी नहीं लगती। बचपन में लौट जाना चाहता है। जहां सिर्फ और सिर्फ बचपना था। सब कुछ सीधा सरल। कोई सीक्रेट नहीं, इसलिए कोई पासवर्ड नहीं। पासवर्ड तो तब चाहिए होता है, जब कुछ छिपाना होता है लेकिन बचपन में छिपाने लायक क्या था। शायद बचपन अब इसलिए भी ज्यादा अहम हो गया था, उसके लिए क्योंकि बचपन में उसके पास कोई सीक्रेट नहीं था। ऐसा कुछ नहीं था, जिसे किसी को बताने में शर्म महसूस हो। इसलिए सबकुछ खुला हुआ था। उन्मुक्त था। उन्मुक्त था, इसलिए उसमें ताज़गी थी। कही कुछ सड़ा हुआ नहीं था। जिंदगी का कोई भी पहलू किसी बटर की तरह बदबू नहीं मार रहा था। इसलिए वो लौट जाना चाहता है पीछे की ओर लेकिन उसके लिए भी अब चाहिए पासवर्ड।

कैसे जिये वो इस ज़माने में, जहां कदम-कदम पर चाहिए पासवर्ड। इसलिए वो फेल है। यहां से वहां भागता रहता है लेकिन नहीं मिलती शांति, नहीं मिलता सकून। घऱ आता है, टेलीविजन के सामने बैठता है। वहां भी हंगामा। बिग बॉस में झगड़ते लोग। सामने प्यार में जान कुर्बान करने की बात, पीछे पीठे जड़ से काटने की बात। बिग बॉस दुनिया का असली चरित्र दिखाता है। एक छोटे से घर में चंद लोगों को बंद कर दुनिया को बताया जा रहा कि देखो तुम ऐसे ही हो। गंदे, अश्लील, चरित्रहीन, चुगलखोर, दूसरों के सुख से जलने वाले, भोग विलास में मतवाले, भोजन के लिए जानवरों की तरह लड़ने वाले। दूसरे को गिराकर उसकी कीमत पर आगे निकल जाने वाले। दुनिया का असली चरित्रा।

सोचता है, हंस ले। कॉमेडी देखना चाहता है लेकिन वहां हंसाने के लिए ताजा कुछ नहीं है। सबकुछ अश्लील। दूसरों का मजाक उड़ाकर उन्हें नीचा दिखाकर दुनिया को हंसाने की कोशिश। दूसरों को नीचा दिखाने में हंसी आती है, अच्छी हंसी आती है। खबर देखना चाहता, सर्कस दिखने लगता है। भागना चाहता है, भाग जाता है वो। उसके लिविंग रूम में दम तोड़ देता है टेलीविजन। वो भी लिविंग रूम में दम तोड़ रहा है। पता नहीं आधुनिक जमाने ने लिविंग रूम नामकरण क्या सोच कर किया है। वो तो लिविंग रूम में भी खुद को लिविंग महसूस नहीं करता। उसके लिए सब रूम एक जैसा है। जहरीला, घुटन भरा।

लेकिन क्या जिंदगी इतनी बुरी, इतनी घुटन भरी, इतनी घटिया है? शायद नहीं। वो जानता है कि जिंदगी ऐसी नहीं है। फिर वो क्यों हार गया है। क्या एक पासवर्ड गुम हो जाने से जिंदगी ऐसे बदल जाती है। पासवर्ड रिसेट भी तो किया जा सकता है। वो भूल जाएगा पासवर्ड चुराकर ले जाने वाली को। जिंदगी को वो अपना नया अर्थ देगा। कुछ भी बंद नहीं रहेगा। सब कुछ खुला रहेगा, बचपन की तरह। उसकी जिंदगी में कोई पासवर्ड नहीं होगा। हर पासवर्ड का ताला वो तोड़ देगा। वो इस जमाने में भी बिना पासवर्ड के जियेगा। उसने तय कर लिया, वो अपनी जिंदगी को फॉर्मेट करेगा। उन सारे वायरस को खत्म कर देगा, जिन्होंने उसे तबाह कर रखा है।

तय हो गया और उसके साथ ही उसके मन ने महसूस की ठंडी हवा की सिहरन। अब उसे सब कुछ ताजा लग रहा था।

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